प्लास्टिक: एक अभिशाप Plastic: A Curse

 Anthology The Research:(ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-5* Issue-8* November-2020)

 Paper Submission: 15/11/2020, Date of Acceptance: 26/11/2020, Date of Publication: 27/11/2020

 

 











बृजमा ेहन मीना
सहायक आचार्य,
प्राणी शास्त्र विभाग,
राज. महाविद्यालय,
बांदीकुई राजस्थान भारत

Abstract

 देश के प्लास्टिक उद्योग की ओर से हाल ही में बयान आया कि वह
देश में प्लास्टिक उद्या ेग का े दा े गुना करना चाहते ह ै ताकि इस क्षेत्र म ंे
रा ेजगार बढाया जा सकें। जिस उद्या ेग की उत्तरा ेत्तर घटाने की जरूरत है,
वहाॅं ए ेसा इरादा चिंता प ैदा करता ह ै। प्लास्टिक मनुष्य जाति के लिये जितना
खतरनाक हो सकता ह ै। इसकी कल्पना अब से 50-60 साल पहले किसी को
नहीं थी। उस जमाने में प्लास्टिक के खिलौने बनते थ े, बड े-बड े ढा ेल आ ैर
टंकियाॅं बनने लगी थी आ ैर तार, टेलिफोन में प्लास्टिक का साम्राज्य हर क्षेत्र म ें
फ ैल गया ह ै। प्लास्टिक पर्यावरण के लिये परमाण ु बम से भी ज्यादा खतरनाक
ह ै। प्लास्टिक 100 साल तक भी नष्ट नहीं होता ह ै। यह नालिया ें में बहकर
जाता ह ै तो उनका े बन्द कर देता ह ै। जमीन में रहता ह ै ता े जमीन को खराब
कर देता ह ै। यह मनुष्य के लिये ही अपितु पशु,पक्षी, समुद्री जीव, पेड-पा ैधे
यानि की सम्पूर्ण जन्तु-जगत को आ ैर सम्पूर्ण पर्यावरण जगत के लिय े
प्लास्टिक बहुत अधिक खतरनाक

Recently, a statement came from the country's plastics industry that it wants to double the plastics industry in the country so that employment can be increased in this sector. An industry that needs to be progressively reduced, where such intention creates concern. Plastic can be as dangerous as human beings. Nobody had imagined it 50-60 years ago. In those days, plastic toys were made, large drums and tanks were being made and the plastic empire in telegraph and telephone has spread in every region. Plastic is more dangerous for the environment than a nuclear bomb. Plastic is not destroyed even for 100 years. If it flows into the drains then closes them. If it stays in the ground then it spoils the ground. Plastic is very dangerous not only for humans but also for animals, birds, sea creatures, trees and plants, and for the whole environment

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