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भारतीय दर्श न और कला प्रतीक Indian Philosophy and Art Symbol

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 Anthology : The Research  ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-6* Issue-1* April-2021 Paper Submission: 01/04/2021, Date of Acceptance: 16/04/2021, Date of Publication: 25/04/2021 ेखा धीमान सह- प्राध्यापक, चित्रकला विभाग, शा0 हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, भोपाल, म॰प्र॰, भारत                                                      Abstract   भारतीय दर्श न का विश्व में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा ह ै। यह स्वयं म े ं गूढ़ रहस्या ें आ ैर अनगिनत संभावनाआ ें का े समाहित किए ह ुए ह ै। इन्हें कला प्रतीका ें ने साकार रूप देकर आ ैर भी समृद्ध बना दिया ह ै। इस प्रकार दर्श न आ ैर प्रतीक में गहरा संब ंध दृष्टिगत हा ेता ह ै। जहां भारतीय दर्श न चिंतन.मनन एवं तर्क.वितर्क से संब ंधित ह ैए जिन्ह ें वाचिक या लिपिबद्ध किया गया ह ै...

का ंगड़ा श ैली के नल-दमयन्ती चित्रो ं की विशेषताए Features of Kangra Style Nal-Damayanti Paintings

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 Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika  ISSN NO.: 2321-290X RNI : UPBIL/2013/55327 VOL-8* ISSUE-10* June- 2021 Paper Submission: 03/06/2021, Date of Acceptance: 14/06/2021, Date of Publication: 25/06/2021 सा ेनाली गुप्ता शोध छात्रा, चित्रकला विभाग, दयालबाग शिक्षण संस्थान (डीम्ड विश्वविद्यालय), आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत                                                     Abstract   कला अपने माध्यमांे के अनुरूप तत्वा ें का े व्यवस्थित रूप से हमारे सम्मुख प्रस्तुत करती ह ै। मनुष्य मना ेवैज्ञानिक आ ैर सामाजिक कारणों से अपने चारा ें ओर के वातावरण का े व्यवस्थित करना चाहता ह ै। एक अच्छे संया ेजन में विविधता में एकता होती ह ै। विविधता की दृष्टि से संया ेजनात्मक तत्वों को व्यवस्थित करक े कलाकार एकता स्थापित करता है यानि संया...

ए॰ए॰ अल्मेलकर का कला संसार The Art world of A.A. Almelker

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   Innovation : The Research Concept  ISSN No. 2456–5474   RNI No. UPBIL/2016/68367 VOL- VI * ISSUE- IV * May - 2021    Paper Submission: 03/06/2021, Date of Acceptance: 14/06/2021, Date of Publication: 25/06/2021   नमिता त्यागी सहायक प्राध्यापक, चित्रकला विभाग, दयालबाग एजूकेशनल इन्स्टीयूट, दयालबाग, आगरा, भारत                                                      Abstract   अब्दुल रहीम अप्पाभाई अल्मेलकरचित्रकारी के परम्परागत श ैली के पोषक थे। दृश्य चित्रण के पश्चात्, ग्रामीण एवं लोक जीवन, भारतीय श ैली के स्त्री प ुरुष व काल्पनिक विषया ें जैसे राजा-रानी, नायक-नायिका, ए ेतिहासिक चित्र जिनमें मुगल, राजप ूत, पहाड़ी श ैली से प ्रभावित चित्र, इसक े अतिरिक्त आदिवासी मछुआरे, अनुसूचित जात...

पहाड़ी चित्र शैली की उपशाखाओ ं में पश ु पक्षी चित्रण Animal Birds Illustration in Subdivisions of Hilltop Style

  Innovation : The Research Concept  ISSN No. 2456–5474   RNI No. UPBIL/2016/68367  Vol.-6* Issue-1* February- 2021 Paper Submission: 02/02/2021, Date of Acceptance: 22/02/2021, Date of Publication: 24/02/2021  नीलम का ंत विभागाध्यक्ष, सहायक प्राध्यापक, चित्रकला विभाग, श्रीमती बी.डी. ज ैन गल्र्स पीजीकाॅलेज, आगरा, उ0 प्र0, भारत abstract भारत की दूसरी प्रमुख कला शाखा राजपूत श ैली में जिसका एक रूप पहाड ़ी शैली के नाम से विख्यात है इन दोना ें कलाशैलियों को परम्परागत समृद्धि दी गई है राजपूत श ैली यद्यपि राजस्थान के विभिन्न प्रान्ता ें में अपना विकास कर गई किन्तु उसका मूल उद्गम जयपुर समझा जाता है। राजपूत आ ैर पहाड़ी दोना ें ही कलाशैलियों ने अपना स्वतंत्रत रूप से निर्माण किया फिर भी पहाड़ी शैली की अपेक्षा राजपूत श ैली में कम प्रभाव एवं ला ेकपि ्रयता लक्षित हा ेती है, उन्नीसवी ं शताब्दी के निर्मित राजपूत कलाकारों के भित्ति चित्र अपना अतुलनीय स्थान रखते हैं साथ ही पहाड़ी श ैली का विस्तार भी अनेक शाखाआ ें में हुआ जिसमें कांगड़ा श ैली प्रमुख है। पहाड़ी चित्रकला का विषय क्ष...

भारतीय भूमिगत वाव-एक अद्भ ुत स्थापत्य Indian Underground Vav - A Wonderful Architecture

  Anthology The Research: (ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-5* Issue-9* December-2020)   Paper Submission: 15/12/2020, Date of Acceptance: 26/12/2020, Date of Publication: 27/12/2020   वर्षा बंसल शोध छात्रा, चित्रकला विभाग, दयालबाग शिक्षण संस्थान, आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत Abstract   भारतीय भूमिगत वावों के विषय म ें बताने से पूर्व म ै ं भूमिगत वावों को बनाने क े पीछे के उद्देश्य को उजागर करना चाहूंगी कि क्यों वावों को निर्मि त करने की जरूरत ज्ञात हुई? सामान्य तथा सामान्य से अधिक वर्षा वाले भौगोलिक क्षेत्रों म ें तालाब आसानी से बनाए जा सकते है ं, लेकिन जहां वर्षा कम होती है और जल का संरक्षण भी जरूरी हो, वहां जल संचयन करना बहुत कठिन होता है। किसानों को ऐसा एहसास हुआ कि फसल सिंचाई तथा मानसून अपवाह रोकने हेतु बड़े आकार के जलागमों का निर्माण करना जरूरी है तथा इसलिए आवश्यकता एवं सरलता के माध्यम को ध्यान म ें रखते हुए उन्होंने वर्षा के जल को अधिकृत करने हेतु रूप का विकास किया और वो था कुएँ व तालाब। ‘When the well’s dry, we know the worth of water’ - Benjami...

अलवर गुणीजनखाने की ग्रंथ चित्रण परम्परा Alwar Gunijankhana's Treatise Illustration Tradition

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  Anthology The Research: (ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-5* Issue-11* February-2021 )   Paper Submission: 15/02/2021, Date of Acceptance: 26/02/2021, Date of Publication: 27/02/2021   ब ेला माथ ुर सह- आचार्य, विभागाध्यक्ष, चित्रकला विभाग, राजकीय महाविद्यालय, बून्दी, राजस्थान, भारत Abstract   अलवर राजपूताने की बह ुत पुरानी स्टेट नही ं रही लेकिन प ्राचीन तथा मध्यकालीन समय में प ्राचीन व ैभव की द्वष्टि से अलवर जनपद का विशेष महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भा ैगा ैलिक द्वष्टि से भी देखा जाए े तो अलवर राजस्थान का सिंह द्वार है। राजस्थान में अलवर शैली की चित्रकला का महत्वप ूर्ण स्थान ह ै। यहा के राजा प्रतापसिंह बख्तावर सिंह विनय सिंह बलवन्त सिंह (तिजारा) शिवदान सिंह मंगल सिंह तथा जयसिंह के समय चित्रकला के क्षैत्र में निरन्तर प ्रगति होती रही। सुलिखित एंव चित्रित ग्र ंथ यहां की कला की विश ेषता रही ह ै। यहाॅ के राव राजाओ नंे कला ए ंव कलाकारो को विश ेष स्थान तथा सम्मान दिया। आज भी यह सुलिखित चित्रित ग्र ंथ अलवर संग्रहालय की प ्रमुख धरा ेहर है। Alwar is not a ve...

मेवाड़ के शासको ं का सांस्क ृतिक इतिहास वीर रस के संदर्भ म Cultural History of Rulers of Mewar with Reference to Heroic Sentiments Style

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  Anthology The Research: (ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-5* Issue-10* January-2021) Paper Submission: 15/01/2020, Date of Acceptance: 26/01/2020, Date of Publication: 27/01/2021     स ंगीता भाटी शोध छात्रा चित्रकला विभाग, राज. महाविद्यालय टोंक राज. भारत रामावतार मीना सह प्राध्यापक, चित्रकला विभाग, राज. महाविद्यालय टोंक राज. भारत Abstract   रायकृष्णदास ने राजस्थानी चित्रकला का उदभव पन्द्रहवी सदी में मेवाड़ में कश्मीर श ैली के मिश्रण से बताया ह ै। इससे मेवाड ़ की चित्रकला अपने स्थानीय विशेषताआ ें से श ुद्ध हिन्दू परम्परा में थी, इसकी प ुष्टि होती ह ै। प ्राचीन मध्यकालीन पश्चिमी भारतीय ष ैली के रुपों एवं अभिप ्राया ें में आदान-प्रदान से उत्तर पश्चिम भारत के विभिन्न शासकों का कला प ्रेम बढ़ा व सभी राजघराने में चित्र बने, जिस े राजस्थानी चित्रकला के नाम से सम्बा ेधित किया गया। मेवाड़ की चित्रकला इतिहास का प्रथम ग्रन्थ ‘‘श्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्ठिा’ तथा द्वितीय सचित्र ग्रन्थ ‘‘कल्पसूत्र’’ तृतीय ‘‘सुपासनाह चरियम्’’ चा ैथा सचित्र ग्रन्थ ‘‘ज्ञानार्ण व’’ पा...