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वर्तमान हि ंदी महिला कथा लेखन और दांपत्य जीवन Current Hindi Female Fiction Writing and Married Life

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 Anthology : The Research   ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-6* Issue-4* July- 2021 Paper Submission: 05/07/2021, Date of Acceptance: 15/07/2021, Date of Publication: 26/07/2021 दलीप कुमार शर्मा  प्राचार्य, प्रणयराज डिग्री कॉलेज, बज्जू, बीकानेर, राजस्थान भारत                                                Abstract   वर्तमान हि ंदी महिला कथा लेखन आ ैर दा ंपत्य जीवन परिवर्तन सृष्टि का शाश्वत नियम ह ै। संप ूर्ण प्रकृति परिवर्तनशील है। जगत जीवन भी परिवर्तनशील ह ै एक मौसम के बाद दूसरा मौसम दिन के बन्द रात आ ैर रात के बाद सुबह आती ह ै। इसी प्रकार परिवर्तनशील जगत के अ ंतर्गत समाज भी इससे अछूता नहीं रह सकता। इसलिए समाज की समय के साथ-साथ बदलता रहा है। हां यह तो हो सकता ह ै की सामाजिक जीवन के किसी पक्ष में परिवर्तन गति तेज हा े इसी में धीमी पर...

Exploration of the Cultural Aspects of Hindi Food Expressions Concerning Hindi Foreign Language Education

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Anthology : The Research   ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-6* Issue-2* May- 2021   Paper Submission: 00/00/2020, Date of Acceptance: 00/00/2020, Date of Publication: 00/00/2020 Dwivedi Anand Prakash  Sharma  Associate Professor,  Dept. of Hindi,  Delhi College of Arts &  Commerce, Delhi, India Abstract Food is rooted in human evolution. The form of food and the communication system both have been ever-evolving parallel with society and culture. Thus food and communication are near related to social customs and cultural practices. Due to the growing interest in gastronomy globally, food is now considered a significant source for exploring a geographical area's cultural characteristics. Like other civilizations and cultures, food and culture in India go hand in hand, which we can see in expressions of diverse Indian languages. Hindi, though a modern Indian language, however, is deeply rooted in the cultural past. Therefore, the tradi...

मीन (मछली) - ,क मा ंÛलिक प्रतीक Pisces (Fish) - A Manglic Symbol

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  Anthology The Research: (ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 VOL- V * ISSUE- V * August - 2020   )   Paper Submission: 16/08/2020, Date of Acceptance: 26/08/2020, Date of Publication: 27/08/2020   स ंगीता गौतम एसोसिएट प्रोफेसर, एस.एस. खन्ना महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत Abstract   प्राचीन काल से ही भारत में मीन का मांगलिक प्रतीक रूप में बह ुतायत से अ ंकन ह ुआ ह ै। हड़प्पा काल की मोहरा े तथा मृदभांड में मीन आकृ तिया ं उत्तीर्ण पाई र्गइ  ह ैं भारत में एक प ूरा प ुराण मत्स्य प ुराण ह ैं आ ैर विष्णु के अनेक अवतारा ें में एक अवतार मत्स्य अवतार भी है भारत में मीन का मा ंगलिक प्रतीक के रूप में बह ुतायत से अंकल ह ुआ ह ै पंच मार्क  के सिक्कों पर दंड ऊपर यहा ं तक की तलवार के मुठा ें पर भी मीन का आकार अंकित किया गया ह ै। आयाम पट्टा ें छत्रों ता ेरणों स्तूपोर चैत्या ें मंदिरा ें के द्वार चैखटा ें और इमारता ें की मेहराबा ें पर मीन के विविध रूप उकेरे गए ह ैं यह परंपरा सांची उदयगिरी आदि शंुग कालीन कला केंद्र से प्रारंभ हा े र्गइ  थ...

वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी भाषा (Hindi Language in the Era of Globalization)

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Anthology The Research: (ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-5* Issue-10* January-2021) Paper Submission: 15/01/2021, Date of Acceptance: 27/01/2021, Date of Publication: 28/01/2021 Abstract बंदना  ठाकुर सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग, राजकीय  महाविद्यालय  नौशहरा, भारत व ैश्वीकरण एक प्रक्रिया ह ै जो व्यापारिक क्रियाकलापों के अ ंतर्राष्ट्रीयकरण की द्योतक ह ै। यह प ूरी दुनिया को आर्थि क, सामाजिक आ ैर सा ंस्कृतिक रूप से जोड ़ने की प ्रक्रिया ह ै। वैश्वीकरण के इस युग में हि ंदी भाषा, विश्व भाषा के रूप में उभरी ह ै। हिंदी आज तकनीकी रूप से विकसित है। विश्व के लगभग 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में हि ंदी शिक्षण आ ैर शोध कार्य हो रह े है ं। अंतर्रा ष्ट्रीय धरातल पर हि ंदी निरन्तर अपनी आवश्यकता सिद्ध करती जा रही ह ै। नई बाजार संस्कृति मंे आर्थि क तथा सांस्कृतिक दोना ें धरातला ें पर हिंदी की भूमिका में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए ह ैं। आज कंप्यूटर, मोबाइल फोन, ट्विटर, व्हाट्सएप आदि सूचना पा ेर्ट ल में इसक े प ्रया ेग ने हि ंदी भाषा के विकास में असीम बढ़ोतरी की है।    ...

निराला के काव्य मे अजनबीपन का बोध (Understanding Alienation Through the Poems of Nirala)

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Anthology The Research: (ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-5* Issue-10* January-2021) Paper Submission: 15/01/2021, Date of Acceptance: 27/01/2021, Date of Publication: 28/01/2021 Abstract   गरिमा त्रिपाठी शोधार्थी, हिंदी भवन, विश्व0भारती, शान्तिनिकेतन बीरभूम,  पश्चिम बंगाल, भारत अजनबीपन आध ुनिक युग की सबसे ज्वलंत समस्याआ ें में से एक ह ै। व्यक्ति सदैव अपने अस्तित्व बोध से परे गतिशील रहने के कारण अपने वर्तमान से विछिन्न होने की प्रक्रिया में रहता ह ै। उसकी महत्वाकांक्षाए असीम ह ैं, वह वतर्मा न में रहते ह ुए भी भविष्य की ओर अग्रसर है। अपनी सम्भावनाआ ें, महत्वाका ंक्षाओं का े पूर्ण करने के लिए उसके कदम अपने वर्तमान परिवेश से कटकर, उनसे अलग हा ेकर ही आगे बढ़ते ह ै ं। अपने परिवेश अपनी स्थिति से कटकर अजनबी हा े जाना, अपने लोगा ें से कटकर अकेला हो जाना मानवीय अस्तित्व की प्रमुख समस्या बनी र्ह ुइ  ह ै। जिसका अवलोकन हम निराला के काव्य के माध्यम से करेंगे।                Alienation is one of the most burning problems of the mode...

मीडिया के विविध रूप और हिंदी (Various Forms of Media and Hindi)

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Innovation The Research Concept: (ISSN: 2456–5474 RNI No.UPBIL/2016/68367 Vol.-5* Issue-12* January- 2021) Paper Submission: 15/01/2021, Date of Acceptance: 27/01/2021, Date of Publication: 28/01/2021 Abstract   उषा सिन्हा विभागाध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, संकायाध्यक्ष, मानविकी संकाय भूपेन्द्र नारायण मंडल  विश्वविद्यालय, उत्तरी परिसर, मधेपुरा,  बिहार, भारत आधुनिक युग मीडिया का युग ह ै मीडिया जीवन आ ैर जगत के अ ंर्तसूत्रा ें को जा ेड़ता ह ै। मीडिया के प ैनेपन, विस्तार ताजगी आ ैर गहर्राइ  के कारण जनमानस प्रबंुध हो रहा ह ै। वह हमें समाचार, विचार, अर्थ ए राजनीतिए विज्ञानए अंतरिक्षए प्रौद्योगिकीए कलाए उद्या ेगए फिल्मए फैशनए साहित्यए संस्कृत एवं स्वास्थ्य से परिप ूर्ण तत्वों की जानकारी देता है। मीडिया की ताकत का लोहा सभी मानते ह ैं। मीडिया माहा ैल बनाता ह ै तो बिगाड ़ता भी ह ै। मीडिया ए ेसी शक्ति है, जिसका लोहा सभी मानते ह ै ं। आज की व्यवस्था में मीडिया समाज एवं देश के लिए सलाहकार हित-चिंतक शिक्षक सेवक प्रहरी एवं शासक की भूमिका निभाता है। यह नाम एक आ ैर भ ूमिका अने...

ढोला मारू रा दोहा का कथानक - वैशिष्टकय (Story of Dhola Maru Ra Doha - Characteristics)

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Innovation The Research Concept: (ISSN: 2456–5474 RNI No.UPBIL/2016/68367 Vol.-5* Issue-12* January- 2021) Paper Submission: 15/01/2021, Date of Acceptance: 27/01/2021, Date of Publication: 28/01/2021 Abstract   सीताराम मीना सह आचार्य, हिन्दी विभाग, स्व राजेश पायलट राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बॉदीकुई, राजस्थान, भारत यह ‘’ढोला मारू रा दोहा’’ राजस्थानी साहित्य का एक श्रेष्ठ रत्न है। इसकी मनोमुग्धकारिणी कहानी का संबंध आमेर के आख्यानों तथा वीर कछवाहा राजवंश से लोक म ें प्रकट हुआ है। इसका प्रचार यहां तक है कि बाजार म ें पोंथी बेचने वालों के पास भी ढोला मारू की बात अथवा मारू का ख्याल नाम की छोटी-छोटी पुस्तकें हम देख पाते हैं। यह मोहिनी कथा कितने ही लालों को पलने म ें दुलारने और उनके कमल नयनों म ें सर्वइंद्रिय-दुख-हरिणी सुख-निंदिया को बुलाने म ें जादू का सा कार्य करती रही है। डॉ हरिकांत श्रीवास्तव के शब्दों म ें, ‘’ढोला मारू रा दोहा’’ एक ऐसा ही काव्य है जिसमें नायिका के पिता ने बचपन म ें साल्ह कुमार से उसका विवाह कर दिया था। यौ ंवन आने पर नायिका ने अपने पति के वियोग का अनुभव किया ...

राजी सेठ कृत उपन्यास ‘तत्सम’ में अभिव्यक्त अन्तद्र्वन्द्व का विवेचन (Explanation of The Inner World Expressed In Raja Seth's Novel 'Tatasam')

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Srinkhala Ek Sodhparak Vaicharik Patrika   (P: ISSN NO.: 2321-290X RNI : UPBIL/2013/55327 VOL-7* ISSUE-11* July- 2020 E: ISSN NO.: 2349-980X) Paper Submission: 10/07/2020, Date of Acceptance: 25/07/2020, Date of Publication: 30/07/2020 Abstract   शशि बेसरवारिया शोधार्थी, हिन्दी विभाग, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर, राजस्थान, भारत शकुंतला देवी  राणा सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, बड़सर, हिमाचल प्रदेश, भारत राजी सेठ कृत ‘तत्सम’ उपन्यास में तीन पात्र ह ैं - वसुधा, विवेक आ ैर आनंद। तीना ें ही अपनी-अपनी परिस्थितियों के कारण अन्तद्र्वन्द्व में रहत े ह ैं। अन्तद्र्वन्द्व के कारण अपने-अपने ह ैं। वसुधा इनमें सबसे अधिक द्वन्द्वग्रस्त ह ै। क्या ेंकि यह नारी ह ै आ ैर समाज में नारी क े लिए इतनी सुगमता नहीं ह ै कि वह अपनी भावनाओं का प ्रकाशन कर सक े। भावनाओं का े दबाने, स्वतन्त्रता न मिल सकने, रूढिगत समाज के दबावा ें के कारण नारी अधिक द्वन्द्वा ें का सामना करती ह ै। ‘तत्सम’ उपन्यास यही तथ्य उद्घाटित करता ह ै।        In the novel Raja ...

छत्तीसगढ़ी लोक वासियों का वीर नृत्यः सैला (Saila : The Chattisgarh Folk Heroic Dance)

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Srinkhala Ek Sodhparak Vaicharik Patrika   (P: ISSN NO.: 2321-290X RNI : UPBIL/2013/55327 VOL-7* ISSUE-12* August- 2020 E: ISSN NO.: 2349-980X) Paper Submission: 16/08/2020, Date of Acceptance: 26/08/2020, Date of Publication: 27/08/2020 Abstract पूर्णिमा अग्रवाल सहा.प्राध्यापक, हिन्दी विभाग,  अम्बाह पी. जी. काॅलेज,  अम्बाह,मुरैना,म.प्र.भारत  सैला का सामान्य अर्थ डण्डा भी ह ै। यह नृत्य डण्डों के सहारे किया जाता ह ै। इसलिए छत्तीसगढ़ में इसे डण्डा नाच कहा जाता ह ै। डण्डा लेकर नृत्य करने वाले नर्तकों का े डण्डाकार कहते ह ै। इस नृत्य के साथ जो गीत गाया जाता है, उन्हें डण्डा गीत के नाम से जाना जाता ह ै। वनों में जीवन व्यतीत करने वाले आदिवासियों के लिए डण्डा उनका सबसे बड़ा शस्त्र है। जिसके द्धारा वे हि ंसक पशुओं से अपनी रक्षा करते ह ै। इस नृत्य में डण्डा, भाला, तलवार आदि अस्त्र-‘शस्त्रा ें के प ्रया ेग की शैलियां देखने को मिलती ह ै। वीर रस युक्त यह नृत्य पुरातन भारतीय वीरता का प ्रतीक ह ै। यह ऐसा नृत्य है जा े शान्ति काल में लोकवासियों के मना ेरंजन करने के साथ ही उन्ह ें...

सामाजिक जीवन का एक दयनीय पक्ष: स्त्रियों का विडम्बित जीवन (A Pathetic Aspect of Social Life: The Ironic Life of Women)

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Srinkhala Ek Sodhparak Vaicharik Patrika   (P: ISSN NO.: 2321-290X RNI : UPBIL/2013/55327 VOL-7* ISSUE-12* August- 2020 E: ISSN NO.: 2349-980X) Paper Submission: 12/08/2020, Date ofAcceptance: 26/08/2020, Date of Publication: 27/08/2020 Abstract पूनम त्रिपाठी शोध छात्र, हिन्दी विभाग, ए0 पी0 एस0 विश्वविद्यालय, रीवा, मध्य प्रदेश, भारत ्रस्तुत शोध पत्र जिसका शीर्ष क ह ै, ‘‘सामाजिक जीवन का एक दयनीय पक्षः स्त्रियों का विडम्बित जीवन’’ में प ्राचीन काल से अद्यतन नारी जीवन में आए विभिन्न परिवर्तना ें का े दर्शाया गया ह ै। इनकी दयनीय स्थिति को साङ्गा ेपांग दर्शा ने के लिए विभिन्न संदर्भ  ग्र ंथों का सहारा लिया गया ह ै। इस शोधपत्र में स्त्रियों की स्थितियों के प ्रत्येक पहलू का े प ुष्ट एवं तथ्य परक बनाने के उद्द ेश्य से विभिन्न साहित्यकार तथा विद्वानों के मता ें का सहारा लिया गया ह ै। इस शोधपत्र में नारिया ें के जन्म से लेकर मृत्यु तक उनके जीवन को विडम्बित करने वाली विविध व्यवस्थाओं का े परत दर परत उभारने की कोशिश की र्गइ  ह ै तथा उनके जीवन की विडम्बनाओं का े ता ेड़ने का स...

नागार्जुन के उपन्यासों में चित्रित समकालीन लोकतांत्रिक व्यवस्था (Contemporary Democratic System Depicted In Nagarjuna's Novels)

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Srinkhala Ek Sodhparak Vaicharik Patrika   (P: ISSN NO.: 2321-290X RNI : UPBIL/2013/55327 VOL-7* ISSUE-12* August- 2020 E: ISSN NO.: 2349-980X) Paper Submission: 14/08/2020, Date of Acceptance: 21/08/2020, Date of Publication: 24/08/2020  Abstract   इन्दिरा कुमारी सहायक प्राध्यापिका,  हिन्दी विभाग, बी.आर.ए. बिहार  विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, बिहार, भारत नागार्जुन जन सरोकारों क े हिमायती साहित्यकार के रूप में स्थापित है ं। समतामूलक समाज की स्थापना और वास्तविक स्वतंत्रता का आग्रह उनकी रचनाआ ें में प्रमुखता से मिलता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमने लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया। संविधान की प्रस्तावना क े माध्यम से समाजवाद की स्थापना, नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता देने ज ैसे उद्देश्य निर्धारित किए। किन्तु, इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु लोकतांत्रिक तरीक े से निर्वाचित सरकार में भी पूर्व की व्यवस्था में भागीदार हित समूहों की प्रभावी भूमिका कायम हा े गयी। नाम और स्वरूप तो बदला; किन्तु, निहितार्थ  और प्राथमिकताएं जन साधारण क े व...

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना के सैद्धान्तिक प्रतिमान (Theoretical Model of Criticism of Acharya Ramchandra Shukla)

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Srinkhala Ek Sodhparak Vaicharik Patrika   ( P: ISSN NO.: 2321-290X RNI : UPBIL/2013/55327 VOL-8* ISSUE-2* October- 2020 E: ISSN NO.: 2349-980X) Paper Submission: 15/10/2020, Date of Acceptance: 29/10/2020, Date of Publication: 30/10/2020 Abstract   जय प्रकाश यादव एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, मुलतानीमल मोदी पी.जी. काॅलेज, मोदीनगर, गाजियाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी आलोचना के वह शिखर पुरूष हैं जिन्होंने हिन्दी आलोचना को सर्व प ्रथम एक मौलिक एवं सैद्धान्तिक स्वरूप प ्रदान किया। श ुक्ल जी ने हिन्दी आला ेचना के अव्यवस्थित स्वरूप एवं गुण, दा ेष निरूपण पद्धति का े व ैज्ञानिक दृष्टिकोण से जांचा परखा और हिन्दी आलोचना का े प ्रा ैढ़ता प ्रदान की। श ुक्ल जी ने अपनी आलोचना में जीवन की अनुभ ूति के साथ-साथ साहित्य के विभिन्न शास्त्रा ें का अभ्यास किया। उन्होंने साहित्यिक आलोचना के क्रम में भारतीय एवं पाश्चात्य चिन्तन पद्धतियों स े भारतीय जीवन मूल्या ें का े विश्लेषित किया। श ुक्ल जी ने साहित्य, कला एवं काव्य के सैद्धान्तिक विवेचन में शास्त्रीय एवं स्वतन्त्र वि...