महाकवि भारवि की काव्यशास्त्रीय विशेषता Poetic Feature of The Great Poet
Anthology The Research:(ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-5* Issue-8* November-2020)
विद्या विन्द
शोध छात्रा,
संस्क ृत विभाग,
राम अवध यादव, गन्ना कृषक
महाविद्यालय, शाहगंज,
जौनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
शोध छात्रा,
संस्क ृत विभाग,
राम अवध यादव, गन्ना कृषक
महाविद्यालय, शाहगंज,
जौनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
Abstract
भारवि की गणना संस्कृत के श्र ेष्ठ महाकाव्यों में की जाती है। किरातार्जु नीयम्
18 सर्गों में निबद्ध महाकवि भारवि का एकमात्र महाकाव्य ह ै। जिसमें का ैरवा ें पर
विजय प ्राप्ति के लिए अर्जु न का हिमालय पवर्त पर जाकर तपस्या करने,
किरात वेशधारी शिव से युद्ध और प ्रसन्न शिव से पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति का
वर्ण न है। सर्ग के आरम्भ में वनेचर द्वैतवन म ें निवास कर रहे युधिष्ठिर के
समक्ष आता ह ै। आ ैर दुर्या ेधन की राज्यस्थिति तथा उनके मना ेभावा ें को जानकर
प ुनः द्वैतवन में आकर युधिष्ठिर का े बताता ह ै। महाकाव्य का प ्रथम सर्ग
राजनीतिक विषय का भण्डार ह ै। कवि द्वारा सुन्दर उक्तिया ें के माध्यम से
रानीतिक विषया ें का वर्णन बड़ी ही सुन्दर एवं मना ेरम शैली में किया गया ह ै।
The only composition of Mahakavi Bharavi is Kiratarajuniyam.
Mahakavi Bharavi is counted among the best Sanskrit epics.
Kiratarajuniyam is the only epic of the Mahakavi Bharavi composed in 18
cantos. In which Arjuna goes to the Himalayan mountain to do penance,
to win the war against the Kirat prostitute Shiva and to obtain the
Pashupat astra from the pleased Shiva, to conquer the Kauravas. At the
beginning of the canto Vancher comes in front of Yudhishthira residing in
the Dvaitavana. And knowing the state of Duryodhana and his
sentiments, he comes back again and tells Yudhishthira. The first canto of
the epic is a repository of political subject. The poet describes beautiful
subjects through beautiful expressions in a very beautiful and captivating
style.
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