पशुधन विकास की राजस्थान राज्य मे वर्तमान आर्थिक समीक्षा Current Economic Review of Livestock Development in Rajasthan State
Anthology : The Research ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-6* Issue-2* May- 2021
Paper Submission: 02/05/2021, Date of Acceptance: 13/05/2021, Date of Publication: 24/05/2021
नीलू चतुर्व ेदी
शोध छात्रा,
भूगोल विभाग,
महर्षि दयानन्द सरस्वती
विश्वविद्यालय,
अजमेर, राजस्थान, भारत
शोध छात्रा,
भूगोल विभाग,
महर्षि दयानन्द सरस्वती
विश्वविद्यालय,
अजमेर, राजस्थान, भारत
Abstract
है। मानव ने भूतल पर अपने कार्यों से भा ैतिक तत्वों मंे परिवर्तन करके आर्थिक व
सांस्कृतिक भू-दृश्यों का विकास किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से क ृषि
आधारित है। कृषि न क ेवल कृषक समुदाय क े जीवन-यापन का साधन है अपितु
विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध करवाती है। देश की कुल जनसंख्या
का दो तिहाई भाग वर्तमान समय में भी क ृषि पर निर्भर है। द ेश मे ं जलवायु विभिन्नता
क े कारण कृषि पद्धतियाँ एक समान न होकर विभिन्नताएँ धारण किए हुए है।
पूर्व-पाषाणकाल में वनवासी मानव ज ंगली भैंसा, गोपशु, शूकर, क ुत्ता, हाथी,
चीतल, नीलगाय, बंदर, गै ंडा, हिरण, तेंदुआ, बाघ, पक्षी, मछली, कछुआ आदि से
भली-भाँति परिचित था तथा उनका शिकार करके अपना पेट भरता था।
प्रागैतिहासिक काल में शिकार की अनिश्चितता तथा भोजन की समस्या
सुलझाने क े लिए मनुष्य क े साथ ही क ृषि एवं पशुपालन अपनाया।
उत्तर पाषाण काल में मानव के भा ेजन में माँस, दूध, अनाज, कंद, फल
आदि भोजन के भाग थे। पशु बलि देने की प्रथा प्रचलित हो गई थी।
धातु काल में मनुष्य ने पशुओं से हा ेने वाले लाभा ें को अच्छी तरह से समझा
जिसक े फलस्वरूप पशुपालन के विकास में तेजी आई।
भारतीय परिवेश में क ृषि क े साथ-साथ पशुपालन भी प्राचीन काल से
सम्पूरक व्यवसाय के रूप में भूमिका निभा रहा है। पशुपालन न केवल दुग्ध उपलब्ध
करवाता है। अपितु वर्तमान समय में भी क ृषि से संबंधित छोटे-बड़े कार्य सम्पन्न
करवाने एवं उपभोक्ता उद्योगों के लिए सामग्री प्रदान करने में तथा खाद्य सुरक्षा क े
आधार प्रदान करता है। पशुपालन का राष्ट्रीय आय में आज भी एक विशेष स्थान है।
यह व्यवसाय ग्रामीण क ृषक समाज को न क ेवल खाद्य उत्पाद (दूध, मांस, अण्डे)
उपलब्ध करवाता है। अपितु रोजगार में भी स्थान बनाये हुये है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में भा ैगोलिक कारकों के कारण क ृषि क े समान
पशुपालन की विभिन्न पद्धतियों में भी भिन्नता पाई जाती है। पशु लाखों लोगों के लिए
सस्ते पौष्टिक आहार उपलबध कराने क े अलावा कृषकों के परिवार की आय का प्रमुख
स्त्रोत है। विशेषतः भूमिहीन मजदूरों, छोटे और सीमांत किसानों आ ैर महिलाओं क े लिए
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है, क्योंकि भूमिहीन मजदूरों क े पास वर्ष भर करने क े लिए
कार्य नहीं हा ेते परन्तु पशुपालन सतत् व्यवसायिक प्रक्रिया है। इससे निरन्तर रोजगार
प्राप्त कर भूमिहीन मजदूर आय का अच्छा साधन प्राप्त कर लेते है। छोटे और सीमांत
किसानों का आय स्तर निम्न ही हा ेता है। अतः वे अल्प भूमि में अत्यधिक लाभ को
पशुपालन द्वारा प्राप्त कर सकते है तथा बनती, बिगड़ती क ृषि परिस्थितियों में भी
निरन्तर आर्थिक लाभ कमा सकते है।
Geography is the study of physical and human interactions on the
surface. Humans have developed economic and cultural landscapes by changing
physical elements through their actions on the ground floor. Indian economy is
mainly agriculture based. Agriculture is not only a means of livelihood for the
farming community but also provides raw material for various industries. Two-thirds
of the total population of the country is still dependent on agriculture. Due to the
climatic variation in the country, the agricultural practices are not uniform but have
variations.
Due to the geographical factors in different parts of India, different
methods of animal husbandry like agriculture are also found to differ. Animals are
the main source of income for the family of farmers apart from providing cheap
nutritious food to millions of people. Especially for landless labourers, small and
marginal farmers and women, because landless laborers do not have work to do
throughout the year, but animal husbandry is a continuous occupational process.
Due to this, the landless laborers get a good source of income by getting
continuous employment. The income level of small and marginal farmers is low.
Therefore, they can get huge profit in small land by animal husbandry and can earn
continuous economic profit even in the deteriorating and deteriorating agricultural
conditions
http://www.socialresearchfoundation.com/upoadreserchpapers/7/433/2107070212191st%20neelu%20kumari%2014249.pdf
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