भारत में जलसंकट की समस्या: चुनौती एवं समाधान Water Crisis Problem in India: Challenges and Solutions
Innovation : The Research Concept ISSN No. 2456–5474 RNI No. UPBIL/2016/68367 VOL- VI * ISSUE- IV * May - 2021
Paper Submission: 00/00/2020, Date of Acceptance: 00/00/2020, Date of Publication: 00/00/2020
सुशील कुमार
सहायक प्राध्यापक,
समाजशास्त्र विभाग,
शिवपति पी.जी. कालेज,
शोहरतगढ़, सिद्धार्थनगर,
उत्तर प्रदेश, भारत
सहायक प्राध्यापक,
समाजशास्त्र विभाग,
शिवपति पी.जी. कालेज,
शोहरतगढ़, सिद्धार्थनगर,
उत्तर प्रदेश, भारत
Abstract
जल संकट की समस्या विश्वस्तरीय चुनौती बनकर हमारे समक्ष खड़ी
हो गयी ह ै। समस्त विश्व में स्वच्छ जल अधिकाधिक दुर्लभ होता जा रहा ह ै।
वन कटान एवं वन विनाश के कारण भूतल पर जल का बहाव तेज हा े रहा है।
वनस्पतियां नष्ट हो रही है, परिणाम स्वरूप पानी के भूगर्भ में रिसने का समय
न मिलने के कारण भूमिगत जल का स्तर कम हो रहा ह ै। भारत में जल के
संचय आ ैर उसक े उपयोग की विभिन्न विधियां परम्परागत रूप से चली आ रही
ह ै। जिस े हमने नगरीकरण एव ं विकास की अन्धी प्रतिस्पर्धा के समक्ष भ ुला दिया
ह ै। तालाब, पोखरे, झील नाले, क ुन्ड, क ुआं, बान्ध, पहाड़ी क्षेत्रा ें में मेढ ़बन्दी, नाद
एवं बन्ध, ह ैबर, जलाशय, तार्लाइ , जोहड ़ एवं बावड़ी आदि जलसंरक्षण
परम्परागत आधार थ े, जहां पर लोग वर्षा का जल जमा करक े उसका
सावधानी से उपयोग करते थ े आ ैर जल की आपूर्ति के साथ साथ भूमिगत जल
का स्तर भी सामान्य बना रहता था, परन्तु आध ुनिक व ैज्ञानिक तकनीक के युग
में हम परम्परागत जल प ्रणालीया ें का े लगातार नष्ट कर रहे ह ै। विकास के
नाम पर हम तालाबो, पोखरा ें, नदिया ें, नालों, जलाशयों, कुआंे का े बन्द करके
बह ुमंजिला इमारते खड़ी कर रह े ह ै। लगातार विस्तर लेते ह ुए शहर बढ़ती
जनस ंख्या, बढ़ती हुई पेयजल की मांग आ ैर उनकी जल आप ूर्ति के लिए किये
जाने वाले आधुनिक संसाधनों ने भ ूमिगत जल के स्तर का े लगातार कम किया
ह ै। मानव ने भूमिगत जल का दा ेहन अविवेकप ूर्ण ढंग से किया ह ै, जल का
उपया ेग कम आ ैर उसका दुरूपया ेग अधिक किया ह ै जैसे नल चलाकर कपड ़े
धा ेने में 116 लीटर पानी खर्च होता ह ै जबकि बाल्टी से धोने में मात्र 36 लीटर
पानी खर्च हा ेता है, शाॅवर मंे नहाने से 100 लीटर पानी जबकि बाल्टी से नहाने
में 18 लीटर पानी खर्च होता ह ै, नल चलाकर सेविंग करने से 5 लीटर पानी
जबकि मग से मात्र 0.5 लीटर पानी खर्च होता ह ै। यदि जल संकट से बचना
ह ै तो पानी की बर्बा दी का े रा ेकना हा ेगा और जल के महत्व को समझना हा ेगा।
हो गयी ह ै। समस्त विश्व में स्वच्छ जल अधिकाधिक दुर्लभ होता जा रहा ह ै।
वन कटान एवं वन विनाश के कारण भूतल पर जल का बहाव तेज हा े रहा है।
वनस्पतियां नष्ट हो रही है, परिणाम स्वरूप पानी के भूगर्भ में रिसने का समय
न मिलने के कारण भूमिगत जल का स्तर कम हो रहा ह ै। भारत में जल के
संचय आ ैर उसक े उपयोग की विभिन्न विधियां परम्परागत रूप से चली आ रही
ह ै। जिस े हमने नगरीकरण एव ं विकास की अन्धी प्रतिस्पर्धा के समक्ष भ ुला दिया
ह ै। तालाब, पोखरे, झील नाले, क ुन्ड, क ुआं, बान्ध, पहाड़ी क्षेत्रा ें में मेढ ़बन्दी, नाद
एवं बन्ध, ह ैबर, जलाशय, तार्लाइ , जोहड ़ एवं बावड़ी आदि जलसंरक्षण
परम्परागत आधार थ े, जहां पर लोग वर्षा का जल जमा करक े उसका
सावधानी से उपयोग करते थ े आ ैर जल की आपूर्ति के साथ साथ भूमिगत जल
का स्तर भी सामान्य बना रहता था, परन्तु आध ुनिक व ैज्ञानिक तकनीक के युग
में हम परम्परागत जल प ्रणालीया ें का े लगातार नष्ट कर रहे ह ै। विकास के
नाम पर हम तालाबो, पोखरा ें, नदिया ें, नालों, जलाशयों, कुआंे का े बन्द करके
बह ुमंजिला इमारते खड़ी कर रह े ह ै। लगातार विस्तर लेते ह ुए शहर बढ़ती
जनस ंख्या, बढ़ती हुई पेयजल की मांग आ ैर उनकी जल आप ूर्ति के लिए किये
जाने वाले आधुनिक संसाधनों ने भ ूमिगत जल के स्तर का े लगातार कम किया
ह ै। मानव ने भूमिगत जल का दा ेहन अविवेकप ूर्ण ढंग से किया ह ै, जल का
उपया ेग कम आ ैर उसका दुरूपया ेग अधिक किया ह ै जैसे नल चलाकर कपड ़े
धा ेने में 116 लीटर पानी खर्च होता ह ै जबकि बाल्टी से धोने में मात्र 36 लीटर
पानी खर्च हा ेता है, शाॅवर मंे नहाने से 100 लीटर पानी जबकि बाल्टी से नहाने
में 18 लीटर पानी खर्च होता ह ै, नल चलाकर सेविंग करने से 5 लीटर पानी
जबकि मग से मात्र 0.5 लीटर पानी खर्च होता ह ै। यदि जल संकट से बचना
ह ै तो पानी की बर्बा दी का े रा ेकना हा ेगा और जल के महत्व को समझना हा ेगा।
The problem of water crisis has become a world-class challenge before
us. Clean water is becoming more and more scarce all over the world. Due to
deforestation and forest destruction, the flow of water on the ground floor is
increasing. Vegetation is getting destroyed, as a result the level of ground water is
decreasing due to lack of time for water to seep into the ground. In India, various
methods of storing and using water have been traditionally followed. Which we
have forgotten in the face of blind competition of urbanization and development.
Ponds, ponds, lakes, drains, kunds, wells, dams, bunds in hilly areas, dams and
dams, habers, reservoirs, talai, johads and stepwells were the traditional water
conservation grounds, where people collect rain water and use it carefully. And
along with the supply of water, the level of ground water also remained normal, but
in the age of modern scientific technology, we are continuously destroying the
traditional water systems. In the name of development, we are erecting multi-storey
buildings by closing ponds, ponds, rivers, drains, reservoirs, wells. The increasing
population of the city, the increasing demand for drinking water and the modern
resources used for their water supply has continuously reduced the level of ground
water. Humans have exploited the ground water irrationally, using less and more of
water like washing clothes by running taps consumes 116 liters of water while
washing from buckets consumes only 36 liters of water, bathing in showers. 100
liters of water, whereas 18 liters of water is spent in bathing from a bucket, 5 liters
of water is spent by saving by running the tap while only 0.5 liters of water is spent
from the mug. If water crisis is to be avoided then the wastage of water has to be
stopped and the importance of water has to be understood.
http://www.socialresearchfoundation.com/upoadreserchpapers/6/434/2107070220571st%20sushil%20sppg%2014204.pdf
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