कबीर की विलक्षणता Singularity of Kabir
Anthology The Research: (ISSN: 2456–4397 RNI No.UPBIL/2016/68067 Vol-5* Issue-8* November-2020) Paper Submission: 15/11/2020, Date of Acceptance: 26/11/2020, Date of Publication: 27/11/2020 शशि बाला रावत प्रवक्ता, हिंदी विभाग, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अगस्त्य मुनि, रूद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड, भारत Abstract हिन्दी साहित्योतिहास का भक्ति काल अपनी कई विशिष्टताआ े के कारण साहित्योतिहासकारों दारा ‘स्वर्ण काल‘ के अभिमान से मंडित किया। इस अभिधान के मूल में जिन भक्तों-संतों का योगदान ह ै उनमें कबीर का व्यक्तित्व अनूठा ह ै। कबीर कवि ही नहीे, समाज-सुधारक भी ह ैं। उन्हा ेंने साहित्यिक एवं सामाजिक दा ेना ें भावनाआ े का निर्वा ह किया ह ैं। कबीर की चेतना विद्रा ेही है, वे जाति-पाॅंति, छूत-अछूत, हिन्दी-तुर्क, वर्ण-‘अवर्ण , राजा-रंक, के भ ेदभाव को समाप्त कर मानवता के प ुजारी थे। कबीर का व्यक्तित्व सर्व जयी थी। ऐस गुरु से कबीर ने सहजता की प ्राप्ति की। कबीर पीड़ा संत्रास में जिए। कबीर वाणी के शहंशाह थे। वीर साधक की अखंड वीरता आत्मविश्वास की कालजयी गोद में ही पल्लवित होती ...